Wednesday, December 9, 2009

दिखता मसान

मन अशांत
चित्त क्लांत
खोजे मन
आकाश वितान
घुटन भरी जिन्दगी
अनजानी सुबह
बौराया शाम
खोजू प्रज्ञान
दिखता मसान
रामानुज दुबे

Wednesday, December 2, 2009

शासन

नैतिकता की नीव पर
नेताओ का भाषण
मानो
अयोध्या में हो गया हो
रावण का शासन

Wednesday, August 19, 2009

सही या ग़लत

कर्म में रत मन हमारा
रंग लेगा अलग
आग पानी को मिलाके
लाऊंगा इक नई सुबह
तुम भले मुझको न समझो
हम ग़लत या तुम ग़लत
आ गले मिल जाए हमतुम
बाँट लें अपनी समझ
चाँद सूरज और धरती
लाना है सब इक जगह
उलझ कर काँटों और पथ्थरो में
क्यो गवाते हो समय
गर तुम्हे लगता ये सपना
बस हँसी भर खेल है
फ़िर तो समझूंगा यही में
में सही हूँ तू ग़लत

रामानुज दुबे

Monday, August 3, 2009

जस के तस

आंबेडकर
अब तुम बिकने की चीज़ बन गए हो

पहले बिका गाँधी
फ़िर बिका राम
बिकता रहा यहाँ
ईमाम और सद्दाम
तुम भी आजकल
बिक रहे हो
बाजार में सरेआम

आंबेडकर
अब तुम बिकने की चीज़ बन गए हो

तुम एक नाम थे
सिधांत थे
संस्थान थे
बाजारी संस्कृति में
गुमनाम थे
दुहाई हो
गरीबी की दलित की
बड़ी जात की जमात की
नेताओ की चुनाव की
तेरे नाम में छुपे
आशा और विश्वास की

आंबेडकर
अब तुम बिकने की चीज़ बन गए हो

बेचते तुम्हे है हर कोई
अवर्ण भी
सवर्ण भी
इतिहासकार भी
चाटुकार भी
दलाल भी
नाटककार भी
और तेरे
सगे सिपहसलार भी

आंबेडकर
तुम समझने की चीज़ हो
उस नासमझ समाज के लिए
जो अँधा और बहरा है
सदियों से
गंदले पानी सा ठहरा है

पर तुम्हे
बना दिया गया है एक प्रोडक्ट
बिक रहे तुम फटाफट
तेरे तो बन रहे
हर जगह बुत प्रस्तर
दलित अब भी है
जस के तस

रामानुज दुबे

Wednesday, July 29, 2009

फर्जी

रात के अंधियारे में
भटकता
मेरा नग्न मन
ढूँढता
उस फरशि को
उसके फरर्शीसलाम को
जो कहने को
मेरा मित्र था
पर फर्जी था

रामानुज दुबे

Monday, July 27, 2009

टिकट

मुझे
उस चोटीधारी भइया का
अकारण उमड़ा
मुस्लिम प्रेम
उसदिन
समझ में आया
जिसदिन
उन्होने
एक तथाकथित
सेकुलर पार्टी से
चुनाव में टिकट पाया

रामानुज दुबे

Friday, July 24, 2009

वह औरत

वह अस्पताल के बाहर
फर्श पर पड़ी
प्रसव वेदना से छटपटा रही थी
उसका पति
मुह में पान चबाये
उसकी पीडा को
बिना दिल में लाये
नर्स से बतिया रहा था
नर्स को
समझा रहा था
कह रहा था
यह नव्ब्मी बार का चक्कर है
अब तक आठ जन चुकी है
पाँच मरा है
तीन खड़ा है
का कहें मैडम
इस औरत का
किस्मत ही सड़ा है
लड़की जनती है हरवार
ना चाहते भी
आना पड़ता है अस्पताल
हजारों खर्च कराएगी
फ़िर एक लड़की
यहाँ से लेके जायेगी
ना जीती है
ना मरती है
सर का बोझ है
दिनभर हमसे लड़ती है
आएये मैडम
जल्दी इस बार का काम निबटाइये
हमको तो फिर
आना ही है अगले साल
जबतक नर्स
अस्पताल के बाहर निकली
तब तक वह औरत
मर चुकी थी
आसमान की ओर मुंह फॉड़े
शायद पूरी दुनिया से कुछ कह रही थी

ऎसी औरत मै रोज देखता हूँ
र्फक सिर्फ़ इतना है
यह औरत
फर्श पर लेटी, मरी पड़ी है
दूसरी औरत
जिन्दा है चल रही

रामानुज दुबे

Friday, July 10, 2009

आस

नपुंसक समाज की आस
विदग्धा पर टिकी है आज
पर अफ़सोस
वो भी इतराकर
केवल कर रही
अपना श्रृंगार
आज देखा मैंने
एक भिखारन को
अस्त व्यस्त
दिख रहा था
आँचल स्पष्ट
सोचने लगा
ये भी कोई
मार्केटिंग का
नया अंदाज है
या दिल्ली मे
कपड़े का अकाल है
रामानुज दुबे

Tuesday, February 3, 2009

सांध्य

सांध्य
अंत या शुरू
आसमा साफ़
छाई लालिमा
एक भ्रम
प्रातः का
सूर्य अस्ताचल
आशान्वित मैं
नव सूर्य का
सांध्य
अंत या शुरू

जिंदगी के दो राहे पर
खड़ा
अंजान
देख रहा
दिवस अवसान
आशान्वित मैं
भव्य भविष्य का
सांध्य
अंत या शुरू

भावनाओं के
भंवर जाल में
फंसा मैं
देखता
कभी प्रातः
कभी सांध्य

सांध्य
अंत भी
शुरू भी
हकीकत भी
कल्पना भी
रोना भी
हँसना भी
मीत भी
टीस भी
प्रातः
सांध्य नही
पर
सांध्य
प्रातः भी
रामानुज दुबे











बालक: एक प्रतिक्रिया

बालक:एक pratikriya

गॉव
की एक
पतली
पगडण्डी पर
लोटता हुआ बालक
मचलता है
लपकता है
माँ की ओर
देखता है
माँ की
धंसी हुए छाती
फटी हुए साडी
ढीले pade
शुष्क स्तन
बांहें phailaaye
दो बेजान haath
बालक
ठिठकता है
रुक जाता
माँ के
कामों में
bina
व्यवधान डाले
अपने खेल मे
मग्न हो जाता ही
shayad
अपने तौर पे


पूरे समाज की
खिल्ली उडाता है
रामानुज दुबे

Friday, January 30, 2009

JAY HO NAYA SAAL

JAY HO NAYA SAAL

Baj rahe nagade
mach rahi dhum
kahi – kahi
udd rahe gulal
jay ho naya saal

kahi chal rahi whisky
kahi chal raha rum
ho rahi party
sath mai sabab
jay ho naya saal

ho rahe dhamake
mann raha jashn
mantri ji ne di badhae
janta parsann
aur kya chahiye janab
jay ho naya saal

ek kanya ko mila hai
miss world runner up khitab
uski khubsurat jism se
mitegi
desh ki bhuk – pyas
jay ho naya saal

har jagah bann raha
chiken- munchurean khas
uss gali ka bachcha
aaj bhi khaya
roti bina pyaj
jay ho naya saal


chamcham gaddi nikli
band bajje ke sath
raste mai khada rikshawwala
diya hawaldar ne
do char hath
jay ho naya saal

dhaniya aaj bhi pitti
tanessar mahajan se
jhidka uss baniye ne
shanichari ko sau bar
jay ho naya saal

aab katna jay kare
jay ki jagah
har jagah hai
jai ho India
jai ho bharat
jay ho naya saal

RAMANUJ DUBEY