Friday, July 24, 2009

वह औरत

वह अस्पताल के बाहर
फर्श पर पड़ी
प्रसव वेदना से छटपटा रही थी
उसका पति
मुह में पान चबाये
उसकी पीडा को
बिना दिल में लाये
नर्स से बतिया रहा था
नर्स को
समझा रहा था
कह रहा था
यह नव्ब्मी बार का चक्कर है
अब तक आठ जन चुकी है
पाँच मरा है
तीन खड़ा है
का कहें मैडम
इस औरत का
किस्मत ही सड़ा है
लड़की जनती है हरवार
ना चाहते भी
आना पड़ता है अस्पताल
हजारों खर्च कराएगी
फ़िर एक लड़की
यहाँ से लेके जायेगी
ना जीती है
ना मरती है
सर का बोझ है
दिनभर हमसे लड़ती है
आएये मैडम
जल्दी इस बार का काम निबटाइये
हमको तो फिर
आना ही है अगले साल
जबतक नर्स
अस्पताल के बाहर निकली
तब तक वह औरत
मर चुकी थी
आसमान की ओर मुंह फॉड़े
शायद पूरी दुनिया से कुछ कह रही थी

ऎसी औरत मै रोज देखता हूँ
र्फक सिर्फ़ इतना है
यह औरत
फर्श पर लेटी, मरी पड़ी है
दूसरी औरत
जिन्दा है चल रही

रामानुज दुबे

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