something rough something fine
Monday, July 27, 2009
टिकट
मुझे
उस चोटीधारी भइया का
अकारण उमड़ा
मुस्लिम प्रेम
उसदिन
समझ में आया
जिसदिन
उन्होने
एक तथाकथित
सेकुलर पार्टी से
चुनाव में टिकट पाया
रामानुज दुबे
1 comment:
विनीत उत्पल
July 27, 2009 at 8:59 PM
बहुत खूब, चोट करने वाली कवितायेँ हैं. दिल-दिमाग और समाज पर.
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