Friday, July 10, 2009

आस

नपुंसक समाज की आस
विदग्धा पर टिकी है आज
पर अफ़सोस
वो भी इतराकर
केवल कर रही
अपना श्रृंगार

8 comments:

  1. Aap ki rachana bahut achchhi lagi...Keep it up....

    Regards..
    DevPalmistry : Lines teles the story of ur life

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  2. शब्दों की मितव्ययता के साथ...
    एक खरी बात...

    शुभकामनाएं...

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  3. बहुत सुंदर है आपकी रचना आपकी

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  4. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

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  5. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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