something rough something fine
Wednesday, July 29, 2009
फर्जी
रात के अंधियारे में
भटकता
मेरा नग्न मन
ढूँढता
उस फरशि को
उसके फरर्शीसलाम को
जो कहने को
मेरा मित्र था
पर फर्जी था
रामानुज दुबे
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