Tuesday, February 3, 2009

सांध्य

सांध्य
अंत या शुरू
आसमा साफ़
छाई लालिमा
एक भ्रम
प्रातः का
सूर्य अस्ताचल
आशान्वित मैं
नव सूर्य का
सांध्य
अंत या शुरू

जिंदगी के दो राहे पर
खड़ा
अंजान
देख रहा
दिवस अवसान
आशान्वित मैं
भव्य भविष्य का
सांध्य
अंत या शुरू

भावनाओं के
भंवर जाल में
फंसा मैं
देखता
कभी प्रातः
कभी सांध्य

सांध्य
अंत भी
शुरू भी
हकीकत भी
कल्पना भी
रोना भी
हँसना भी
मीत भी
टीस भी
प्रातः
सांध्य नही
पर
सांध्य
प्रातः भी
रामानुज दुबे











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